Friday, April 2, 2010

सच्चा दानवीर कौन?

महाभारत का एक प्रसंग अक्सर मुझे प्रेरित करता है...
श्री कृष्ण कर्ण की दानवीरता को बहुत सहारते थे। अर्जुन इस बात से सहमत नहीं थे और अपने अग्रज युधिस्थर को ही सबसे बड़ा दानवीर मानते थे। एक बार श्री कृष्ण कर्ण के दान की चर्चा कर रहे थे जिस पर अर्जुन ने उनसे पूछा की कर्ण की दानवीरता हमारे भ्राताश्री के दान मान से बढ़कर कैसे हो सकती है जब की कर्ण हमारे शत्रु संघ के सदस्य है? आप हमारे समक्ष शत्रु पक्ष के योद्धा की बड़ाई कैसे कर सकते हैं?इस पर भगवान् कृष्ण ने कहा की क्यों न इस बात की परीक्षा ले जाए?
वह अर्जुन समेत साधू वेश धारण करके युधिस्टर के महल में गए और द्वार पर भीक्षा मांगने लगे... जब युधिस्टर को इस बात का पता चला तो वह तुंरत द्वार पर आए और दोनों साधुओं का आदर सत्कार किया और उन्हें अन्दर ले गए। एक साधू [ श्री कृष्ण] ने उनसे कहा की हमें अभी इसी समय एक मन शुद्ध चंदन की लकड़ी चाहिए। युधिस्टर इस बात से असमंजस में पड़ गए क्योंकि उस समय बाहर घनघोर वर्षा हो रही थी। शुद्ध चंदन की सूखी लकड़ी मिलना उन्हें सम्भव नहीं लगा। उन्होंने अपनी दशा साधुओं के समक्ष राखी और निवेदन किया की वे कुछ और भिक्षा ग्रहण करें। इस पर श्री कृष्ण ने उनसे कहा की हमें तो चंदन की लकड़ी की ही आवश्यकता थी और वे उसका प्रयोजन कर दें अन्यथा वे किसी और द्वार पे जायेंगे। युधिस्टर ने उनसे क्षमा मांगी और चंदन की लकड़ी के आलावा और कुछ भी ग्रहण करने को कहा। दोनों साधू वेशधारी वहां से चले आए और सीधे कर्ण के महल पहुंचे।
कर्ण के समक्ष भी उन्हों ने अपनी इच्छा व्यक्त की। एक बारगी तो कर्ण भी असमंजस में पड़ गए लेकिन तुंरत उन्होंने अपना धनुष बाण उठा लिया और साधुओं से कहा की भले ही वर्षा हो रही हो लेकिन आप की इच्छा अवश्य पूरी की जायेगी। उन्होंने बाण मार मार कर अपने महल के सारे खिड़की दरवाजे तोड़ डाले जो की शुद्ध चंदन की लकड़ी के बने थे और एक मन क्या कई मन लकड़ी का ढेर लगा दिया। श्री कृष्ण अर्जुन समेत कर्ण को धन्वाद दे कर लौट आए।
फिर श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा की इसीलिए में कर्ण को सबसे बड़ा दानवीर मानता हूँ। खिड़की दरवाज़े युधिस्टर के महल में भी है परन्तु उनके मन में यह बात आयी ही नहीं की चंदन की लकड़ी उनसे भी निकाली जा सकती है।
जो इंसान दान धरम पुण्य के लिए किसी अवसर की तलाश में रहता है वो वास्तव में दानवीर नहीं है। सच्चा दानवीर हमेशा अपना धरम निभाता है और किसी अवसर को भी खली नहीं जाने देता, चाहे उसके लिए उसे अपना सब कुछ ही क्यों न न्योछावर कर देना पड़े!!

8 comments:

Swagat said...

Great Post अर्जुन ji

RAJ SINH said...

हिन्दी ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है !
अनेक शुभकामनायें .

वर्ड वेरिफिकेसन हटा दें .इसका कोई फायदा नहीं सिर्फ तिप्पनेकारों को असुविधा होगी . !

शशांक शुक्ला said...

अच्छा लिखा है, जानकर अच्छा लगा

kshama said...

Ye katha maaloom na thee! Great!

saurabh said...

prena dayak katha ansh....bahut achhe ,,,,,,aise hi prenaspad kahaniya likhe jo prena de sake..sadhu vad ..

shama said...

Bahut achhe qisse se ru-b-ru karaya aapne!

Pratul Vasistha said...

एक मूल्यवान कथा से प्रारम्भ करना एक किसी भी पुण्य कर्म की वृद्धि में सहायक होता है। शुभकामनाएं।

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें